तइहा के बात ला बईहा लेगे, समे ह बदल गे अउ नवा जमाना देस म अपन रंग जमा डारे हे। एकअन्नी-दूअन्नी संग अब चरन्नी नंदा गे हे। सुने हन सरकार ह अब पांच रूपिया ला घलो बंद करईया हे, अब हमर रूपिया दस ले सुरू होही। पहिली हमर सियान मन खीसा भर पईसा म झोला भर जिनिस बिसा डारत रहिन, अब झोला भर रूपिया म खीसा भर जिनिस मिलत हावय। मंहगई के अहा तरा मुह फरई ला देख के नेता अउ मीडिया वाले मन अड़बड़ चिंता करत दिखथें, उंखर चिंता ला देख के लागथे के, देस के जम्मो चिंता के बोझा उंखरे उप्पर हावय। तभो ले, ना तो देस के खरचा मा कमी होवय ना बीपीएल के परचा म कमी होवय।
रोजे धकापेल पान ठेला म जर्दा पाउच अउ दारू भट्ठी म दारू बेंचावत हावय, गाड़ी फटफटी म तेल भरावत हावय, बिन बूता के बूता जवान छोकरा मन गुटका मूह म दाबे फटफटी फर्रावत हांवय, बड़का ककवा कस मोबाइल खीसा म धरे बाप मेर पईसा मांगत हांवय, अउ बापो ह महगई के सोच करे बिना उडाये बर पइसा देवत हावय। अइसनहो मन हमन ला कहत हावय के ‘मंहगाई ले कम्मर टूट गे, महंगइ ह हमला चिंता म डार दीस…!!’
ये सरलग अनादि काल के सत ये के, महंगइ ले जादा ओखर चिंता के डमडमा होथे। तइहा के बात ल बइहा जाने फेर चिंता करइ आजकल के फेसन हो गए हे, तेखर खातिर हम कलेचुप सुनथन। बघेरा वाले दाउ के समे म लोकप्रिय गायक छत्तीसगढ़ के रफी भाई केदार यादव के नवा बिहान म जयंती बाई ह जब बद्रीविशाल परमांद के गीत ‘कम्मर टूट ना गुलैती, ये महगंई के मारे गुलैती, कम्मर टूट गे ना’ गावय, तब उहू समें हमर सियान मर बड़ चिंता करंय। वो बेरा म कहूं मंहगई बर बड़का सियान मन चिंता नई करतिन त ये गीत ह अतका परसिध नई होतिस, माने कि सबे समे म मंहगाई बर चिंता करईया रहिन, भले आज पोटिया गांव म पचत जयंती बाई के चिंता कउनो झन करय।
कुछ उज्जर कुरथा पहिरइया मन चिंता नइ करंय, उमन ल येखर कभू जरूरत परबेच नइ करय, उमन बीर बन के महंगई संग लरे के दांव बताथें। जना मना महंगइ ह कउनो बिलई ये, के ओखर कान ल उमेठ के कनबुच्ची बइठार देहू? ये दूनों बात ला देख के मोला लागथे के देश म टोपी लगा के जईसे लोकपाल, निपोरपाल, चंदोरपाल के बिवस्था करे जात हे, तईसनेहे मंहगई बर चिंता करईया अउ मंहगई के बिरोध म गोठ बात करईया, कोनो चिंतापाल के बिवस्था करना चाहिए। ओ ह, हर हप्ता मंहगई के बिरोध म लम्भा लम्भा भासन झाड़य अउ गजट मन मा बिगियपति देवय। महगई के बिरोध म रेरियाये खातिर चिंतापाल ह जम्मो परदेस अउ जिला स्तर म एक एक झन के नियुक्ति करय। जेखर सिरिफ इही काम रहय के सरकार ह जईसे पेट्रोल उट्रोल के भाव बढ़ावय त वो ह, होs होs हो sss रोवय, ताकि जनता ला पता चल सकय के मंहगई बाढ़ गे हे।
अब अपन पीरा ल जनवाए बर दरोगा राखे के पारी आ गए हे। हमन ह, न तो गाड़ी फटफटी म पेट्रोल फुंके म कमी करन ना सरकार के कारिंदा मन। खाली महंगई के रोना रोथन। नेता मन तो अउ अतलंग कर देहे हें, बाहिर-बट्टा तको जाना हे अउ कहूँ तीर तखार म सुलभ सोंचालय के सिलानियास बर जाना हे, तभो उमन कार म जाहीं, अउ एक ठन कार नहीं, अपन संग चार ठिन कार ला जुच्छा रेंगवाहीं। जेखर ले पता चल सकय के नेताजी आवत हे। काखर काखर ल गोठियांवव.. सरकार ला तो, ये बात के फिकरे नई हे, जउन साहब मन ला सरकार डहर ले गाड़ी मिले हे, तेखर लईका मन ला फिलिम जाना हे, साग भाजी लाना हे, त सरकारी गाड़ी भर्रावत इंदिरा मारकिट पहुंचत हे, त कोन कहिथे के महगाई बाढ़त हावय। असली बात लोगन के खर्चा करे के सामरथ ह बाढ़त हावय। हमर खून पसीना ले कमाए पैसा ल टेक्स म वुसुल के अउ भ्रष्ट्राचारी करके सरकार के कारिंदा अउ नेता मन के खरचा बाढ़त हे। मिलावटखोरी अउ जमाखोरी ले बियापारी, ठेकेदार मन के खरचा बाढ़त हे। हमर खेत म राख छींच के, हमला नंगरा बना के, उद्योगपति मन के मन के खरचा बाढ़त हे। कोन कथे महंगई बाढ़त हे, ताली वाले बेतनमान संग दू लंबर के इनकम तको तो बाढ़त हे।
इमन ल खरचा करन दव, तुम जनता आव त कलेचुप महंगइ के चरचा करव, चिंता करव। एखर ले तुहाँर चतुरई घटही अउ येमन बिना तुतारी के मेछराही।
तमंचा रायपुरी